कुम्हार वर्ग पर कोरोना का कहर


कुम्हार एक ऐसा वर्ग है जो सदियों से यही मिट्टी के बर्तन मूर्तियां बनाकर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता आ रहा है समाज में चाहे इन्हें शिल्पकार का दर्जा ना दिया गया हो फिर भी यह किसी हस्त कलाकार से कम नहीं ।मगर यह वर्ग भी आजकल हताश हो गया है। corvid 19 करोना महामारी के चलते सबसे ज्यादा
इसी वर्ग को प्रभावित किया। गर्मियों में काम में लाए जाने वाले मटको को तीन चार महीने पहले से ही बनाना शुरू कर दिया जाता है मगर 3 महीने तक तो लोग डॉन चलता रहा।
काम पूरी तरह से ठप रहा । मट्टी तक तो ला ना सके।
अब जाकर थोड़ी ढील मिली ऐसे में 45 डिग्री तापमान में अब यह कहां मट्टी लाएं और कब  मटके पकाएं।

मिट्टी को बर्तनो का आकार देते हुए एक कुमार


सब जानते हैं कि मटके बनाने के लिए मिट्टी को तैयार करना होता है। फिर मटका बनाना उसके बाद उसे भट्टी में पकाना फिर उसे ठंडा करना उसके बाद जाकर वह बाजार में बेचने के लायक होता है इस कार्य में महीनों लगते हैं।
एक महीने बाद तो बारिश का सीजन आ जाएगा ।
ऐसे में कुम्हार समाज बहुत ही ज्यादा दुखी और परेशान है

गमले बनाता कुम्हार 45 डिग्री तापमान में


 जो थोड़ी बहुत इनके पास उपलब्ध मट्टी थी उससे यह मजबूरी के चलते 45 डिग्री तापमान  में गमले बना रहे हैं मगर मार्केट में अब गमले तक भी कोई खरीदने को तैयार नहीं नर्सरी  भी सारी ठप पड़ी हैं। सरकार भी उनकी ओर ध्यान नहीं दे रही है वह अपने आप ही अपने घर के पालन पोषण की खातिर जद्दोजहद कर रहा है।
Dk chandigarh

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